जानिए पटाखों का इतिहास (History Of Fire Crackers) बारे मैं।

 
भारत के अलावा दुनियाभर में पटाखों को खुशियां मनाने का एक तरीका माना जाता है. विदेशों में भी न्यूईयर से लेकर कई इम्पोर्टेन्ट इवेंट्स पर जमकर आतिशबाजी की जाती है. भारत में तो शादी-ब्याह के मौकों पर भी खूब पटाखे फूटते हैं. लेकिन क्या आप जानते हैं कि असल में इसकी शुरुआत कैसे हुई थी?

पटाखों की शुरुआत को लेकर कई तरह की कहानियां मशहूर है. लेकिन इतिहास में सबसे ज्यादा लोग इस बात से सहमत हैं कि इसकी शुरुआत चीन में छठी सदी के दौरान हुई थी. इसके साथ काफी इंट्रेस्टिंग कहानी जुड़ी है.

कहते हैं कि पटाखे का आविष्कार गलती से हुआ था. वहां खाना बना रहे रसोइये ने खाना बनाते हुए गलती से सॉल्टपीटर जिसे पोटेशियम नाइट्रेट भी कहते हैं, को आग में फेंक दिया था. इसके बाद उससे रंगीन लपटें निकली.

जब रसोइये ने इसके साथ कोयले और सल्फर का पाउडर भी आग में डाला तो काफी तेज धमाका हुआ. इस तरह बारूद का अविष्कार हुआ था और फिर इसे पटाखों में भरकर उसकी शुरुआत की गई.

हालांकि, कुछ लोगों का कहना है कि पटाखे की शुरुआत ऐसे ही हुई थी, सिर्फ इसे करने वाला कोई रसोइया नहीं बल्कि चीनी सैनिक था. जिसने बारूद के इस मिक्स को बांस में भरकर पटाखे बनाए थे. इससे ये तो कंफर्म है कि पटाखे असल में चीन में ही बने हैं.

बात अगर भारत की करें तो पंजाब यूनिवर्सिटी के हिस्ट्री प्रोफ़ेसर राजीव लोचन ने बताया कि भारत में 15वीं सदी में इसकी शुरुआत हुई है. कई पेंटिंग्स में लोगों को आतिशबाजी करते देखा गया है.

भारत के इतिहास में भी शादी-ब्याह में पटाखों का इस्तेमाल किया जाता था. इसके अलावा बारूद का इस्तेमाल युद्ध में भी किया जाता था. इसकी आवाज से दुश्मनों को भगा दिया जाता था. वहीं अभी चेन्नई से पांच सौ किलोमीटर की दूरी पर स्थित शिवाकाशी में सबसे ज्यादा पटाखों का उत्पादन किया जाता है.

कहा जाता है कि शिवाकाशी में देश के अस्सी प्रतिशत पटाखों का निर्माण किया जाता है. एक समय में यहां पटाखों की एक छोटी सी फैक्ट्री थी. अब ये काफी बड़ी हो चुकी है.

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